आज रामकृष्ण परमहंस की जयंती है।
1920 के दशक में दिनेश चंद्र दास गुप्ता नाम के एक मेधावी नौजवान ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद पत्रकारिता को करियर के रूप में चुना।
लेकिन वह महात्मा गांधी के प्रभाव में आया और असहयोग आंदोलन के दौरान उसे कुछ समय के लिए जेल जाना पड़ा।
लड़कपन में ही उसका परिचय रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के विचारों से हो गया था। बल्कि उसे रामकृष्ण परमहंस की पत्नी सारदामणि से सीधे दीक्षा लेने का अवसर भी मिला था। आगे जाकर वह स्वामी निखिलानंद के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
1924 में जब 29 साल के इस नौजवान संन्यासी ने रामकृष्ण परमहंस की प्रसिद्ध जीवनी ‘दी लाइफ़ ऑफ़ श्री रामकृष्णा’ लिखी, तो उसकी भूमिका लिखने के लिए महात्मा गांधी से अनुरोध किया।
महात्मा गांधी ने इस भूमिका में लिखा था—
“रामकृष्ण परमहंस की जीवनी धर्म के आचरण की कथा है। …रामकृष्ण का जीवन अहिंसा के उच्चतम् आदर्श को व्यवहार में जीकर दिखाने की सीख है। उनका प्रेम भौगोलिक या अन्य किन्हीं भी सीमाओं में बंधा हुआ नहीं था।”
रामकृष्ण परमहंस, जिन्हें कुछ लोगों ने अनपढ़ और पागल तक करार दिया था, उसका एक कारण यह भी था कि उनके जीवन में वेदांत, इस्लाम और ईसाइयत सब घुल-मिल कर एकरूप हो गए थे।
उन्होंने अपने जीवन से दिखाया था कि धर्म किसी मंदिर, गिरजा, विचारधारा, ग्रंथ या पंथ का बंधक नहीं है।