Saturday, July 27, 2024
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लोकतंत्र बनाम माओवाद विषय पर विचार गोष्ठी, डिप्टी सीएम विजय शर्मा होंगे मुख्य अतिथि

रायपुर। उप मुख्यमंत्री व गृहमंत्री विजय शर्मा के मुख्य आतिथ्य में “लोकतंत्र बनाम माओवाद-थ्येन आनमन की विरासत का बोझ” विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन सोमवार 3 जून को दोपहर 2.30 बजे से वृदांवन हॉल, छत्तीसगढ़ कॉलेज के पीछे, सिविल लाइन रायपुर में किया गया है। बस्तर शांति समिति के एमडी ठाकुर व राधेश्याम मरई के संयोजन में आयोजित इस विचार गोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रसिद्ध लेखक राजीव रंजन प्रसाद होंगे।

बस्तर शांति समिति ने विचार गोष्ठी के उक्त संदर्भित विषय के संबंध में ऐतिहासिक तथ्यों को भी साझा किया है। कहा है कि चीन माओवाद का ध्वजवाहक देश है, जहां लौह आवरण में सिसकता लोकतंत्र है। एक ऐसा देश जहां माओ के सिद्धान्त की केंचुली ओढ़कर पूंजीवाद और बन्दूक की नली के भरोसे महाशक्ति बनकर येन केन प्रकारेण दुनिया पर राज करना एकमात्र लक्ष्य है। उस चीन की केंचुली उतरने और लोकतंत्र विरोधी विभत्स चेहरा का गवाह है बीजिंग का थ्येन आनमन चौक। चीन में लोकतंत्र के लिए हुई क्रांति और उसका बर्बरतापूर्वक दमन चक्र का रक्त रंजित इतिहास है थ्येन आनमन चौक।
आधुनिक वैश्विक इतिहास के पन्ने पर दर्ज रक्त रंजित तारीख 4 जून 1989 को कम्युनिस्ट पार्टी के उदारवादी नेता हू याओबांग की मौत के विरोध में हजारों छात्र इस चौक पर प्रदर्शन के लिए इकट्ठा हुए थे। 30 वर्ष पूर्व 4 अप्रैल से 4 जून तक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करते हुए लोकतंत्र की मांग करने वाले छात्रों और नागरिकों पर चीनी सैनिकों ने क्रूरतापूर्वक गोलीबारी की थी। चीन की कम्युनिस्ट सरकार के दमन चक्र के लाल धब्बों को थ्येन आनमन चौक से कभी नहीं मिटाया जा सकता।

अप्रैल 1989 में 10 लाख से अधिक प्रदर्शनकारी राजनीतिक आजादी की मांग को लेकर थ्येन आनमन चौक पर एकत्रित हुए। चीन के इतिहास में वामपंथी शासन के लिए यह एक बड़ा झटका था, क्योंकि इससे पहले इस तरह का राजनीतिक प्रदर्शन जो डेढ़ महीने तक चला हो कभी नहीं हुआ था। ये प्रदर्शन शहरों, विश्वविद्यालयों से होते जन-जन को जागृत कर गया था। जनता तानाशाही से मुक्ति, लोकतंत्र, स्वतंत्रता, सामाजिक समानता, प्रेस और बोलने की आजादी की मांग कर रही थी। वहीं बढ़ती मंहगाई, कम वेतन आदि के कारण से चीनियों में रोष व्याप्त था। इस स्व-स्फूर्त प्रदर्शन पर दुनिया भर की नजरें थीं। वहीं कम्युनिस्ट पार्टी इस बढ़ते जन-आंदोलन से निपटने के लिए संघर्ष कर रही थी। घटनाक्रम इतिहास के पन्नों पर दर्ज होता जा रहा था।
17 अप्रैल को हजारों छात्र और कामगार कम्युनिस्ट पार्टी के उदारवादी नेता हू याओबांग की मौत के विरोध में थ्येनआनमन चौक में एकत्र हुए। 18 – 21 अप्रैल तक आंदोलनकारियों के एजेंडे में स्वायत्तता और स्वतंत्रता शामिल हो गई। 27 अप्रैल को लाख से अधिक छात्र पुलिस का घेरा तोड़कर आगे बढ़े। 15 मई को सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव की चीन यात्रा के समय उनके सार्वजनिक स्वागत कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। 19 मई को कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव झाओ जियांग ने विरोध प्रदर्शन का बचाव किया। 20-24 मई को शीर्ष नेता देन श्याओपिंग ने मार्शल लॉ लागू किया। 29-30 मई को थ्येन आनमन गेट पर लगे माओत्से तुंग के चित्र की ओर मुंह करके गॉडेस ऑफ डेमोक्रेसी प्रतिमा खड़ी की गई।

3 जून को 2 लाख से अधिक सैनिकों का बीजिंग में प्रवेश हुआ और 36 प्रदर्शनकारी मारे गए। 4 जून को प्रतिरोध को कुचलते हुए सेना की टुकड़ियों ने थ्येन आनमन चौक में प्रवेश किया। गॉडेस ऑफ़ डेमोक्रेसी की प्रतिमा को टैंक से उड़ा दिया गया। छात्रों ने विरोध किया तो बख्तरबंद वाहनों में बैठे सैनिकों ने अंधाधुंध गोलियां चलाई और प्रदर्शनकारियों को बर्बरतापूर्वक कुचलने लगे। 5 जून को एक अकेला आदमी चांगान एवेन्यू पर ट्रैंकों के सामने खड़ा हो गया, जिसे बाद में “टैंकमैन” का नाम दिया गया। टाइम पत्रिका ने बाद में उसे 20वीं शताब्दी के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक माना।

दरअसल माओ के बाद सत्ता संभालने वाले देंग शियाओपिंग ने अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिये आर्थिक सुधार की पहल की। खुली अर्थव्यवस्था के साथ मुद्रास्फीति, रोजगार पर संकट, संसाधनों पर एकाधिकार, भष्टाचार और भाई-भतीजावाद जैसी समस्याएं जन्म लेने लगीं। प्रेस और अभिव्यक्ति की पाबंदी ने समाज में आग में घी का काम किया। इसका परिणाम था 1986-87 का छात्र आंदोलन 1989 के आते-आते असंतोष तेजी से फैलने लगा और अप्रैल- मई तक चीन के समाज पर इसका प्रभाव स्पष्ट महसूस किया जाने लगा था। स्थिति को नियंत्रण से बाहर होता देख चीन में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया और बड़े स्तर पर छात्र नेताओं और उनके रहनुमाओं की धरपकड़ चालू हो गई। इससे माहौल और बिगड़ गया। ऐसे माहौल में बीजिंग के थ्येन आनमन चौक पर हुए बर्बर दमनचक्र ने दुनियाभर में चीन को विलेन बना दिया। इस दमनचक के बाद कई देशों ने चीन पर राजनैतिक और आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये। इस दमनचक्र के बाद चीन में पूंजीवाद तेजी से उभरा और आज वह पूंजीवाद का प्रतीक बन गया। थ्येन आनमन चौक पर जो बर्बर दमनचक्र चला था, उसे चीन में याद नहीं किया जाता, लेकिन शेष पूरी दुनिया में याद किया जाता रहा है। चीन सरकार ने इस हत्याकांड को इतिहास से बाहर करने की तमाम कोशिशें कीं, जो कि कम्युनिस्ट व्यवस्थाओं का तरीका रहा है। चीन में उस घटना का जिक्र तक करना अपराध है, इसलिए नई पीढ़ी को मालूम तक नहीं है कि ऐसी कोई घटना घटी भी थी।

एक तरफ चीन के माओवाद के असल रूप का आईना दिखाता थ्येन आनमन चौक है, वहीं दूसरी ओर भारतीय गणतंत्र का लोकतंत्र है, जहां संविधान का राज है, अभिव्यक्ति की आजादी है, मौलिक अधिकारों का कवच है, जनता के प्रति जवाबदेही है, विकास के लिए प्रतिबद्ध सरकार है। यहां समस्याओं का समाधान बंदूक की गोलियों से नहीं, बल्कि विरोधी विचारों के सम्मान, संवाद, आपसी चर्चा बोलियों में है। वो जिसे माओवाद कहते हैं, वैसा आचरण में करते नहीं हैं। हम जो कहते हैं वो करते भी हैं। वहां छद्म माओवाद है। हमारे यहां प्रखर राष्ट्रवाद है। चीन में रहने वाले नहीं जानते कि लोकतंत्र क्या है। भारत में लोकतंत्र की बुनियाद है। विकास का परवाज है।

Ravindra Singh Bhatia
Ravindra Singh Bhatiahttps://ppnews.in
Chief Editor PPNEWS.IN. More Details 9755884666
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