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– जल संरक्षण के प्रति सजगता ही समाधान
राजनांदगांव 25 अक्टूबर 2024। जल अमूल्य है, अमृत है और हमारे जीवन के लिए तथा सृष्टि के हर एक प्राणी के लिए आवश्यक है। जल संरक्षण की दिशा में जिला प्रशासन द्वारा जनसहभागिता से मिशन जल रक्षा अभियान मिशन मोड में चलाया जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग, भू-जल का अत्यधिक दोहन एवं विभिन्न कारणों से राजनांदगांव जिले में घटते हुए जल स्तर ने विकासखंड राजनांदगांव, डोंगरगांव एवं डोंगरगढ़ में चिंताजनक स्थिति निर्मित की है। इन क्षेत्रों में भू-जल के अत्यधिक दोहन के कारण जल संकट की स्थिति बन सकती है। ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है सजगता, ताकि हमारे आने वाली पीढिय़ों के लिए जल संकट की स्थिति नहीं बने। इसके लिए अभी से सशक्त कदम उठाने होंगे। कलेक्टर श्री संजय अग्रवाल ने रबी सीजन में कम पानी की आवश्यकता वाली फसल लगाने के लिए किसानों से अपील की है। धान की फसल में पानी की ज्यादा जरूरत होती है। किसानों को मक्का, कोदो, कुटकी, दलहन, तिलहन, सब्जी, फूल-फल की उद्यानिकी फसलें एवं लघु धान्य फसल लेना चाहिए। इससे जल संरक्षित हो सकेगा। जिन क्षेत्रों में भू-जल स्तर में अत्यधिक गिरावट आई है, वहां विशेष प्रयास एवं कार्य करने होंगे। जिसके लिए सभी किसानों के सहयोग एवं जागरूकता की जरूरत होगी। विचारों में परिवर्तन करते हुए फसल विविधीकरण के लिए कदम बढ़ाने की जरूरत है, ताकि हमें समाधान मिल सके। निश्चित ही यह हमारी भावी पीढ़ी के लिए महत्वपूर्ण कार्य होगा।
गौरतलब है कि जिले में 32000 नलकूपों द्वारा भूमिगत जल का अंधाधुंध दोहन होने के कारण भविष्य में पेयजल निस्तारी एवं अन्य उपयोग के लिए जलसंकट की स्थिति बनेगी। धान की फसल को अत्यधिक जल की आवश्यकता 140-150 सेमी होती है। कम जल आवश्यकता वाली फसले-मक्का (50-60 सेमी), दलहन (25-30 सेमी), सोयाबीन (60-70 सेमी), तिल (30-36 सेमी), गेहूं (45-50 सेमी), रागी (50-55 सेमी) जैसी फसलों की खेती करके ग्रीष्मकालीन धान के क्षेत्र को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है। इस हेतु जिला प्रशासन के मार्गदर्शन में फरवरी 2024 से निरंतर कृषक प्रशिक्षण कार्यशाला एवं संगोष्ठियों के माध्यम से कृषकों को जागरूक कर ग्रीष्मकालीन धान की तुलना में लाभकारी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। 1 अक्टूबर 2024 से कुल 511 ग्रामों में ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारीवार शिविर आयोजन किया जा रहा हैं, जिसमें किसान संगवारी के साथ ग्राम पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधि एवं कृषकों की सहभागिता सुनिश्चित की जा रही है।
मक्का, गन्ना, कपास, लघु धान्य फसल रागी की फसल में असीम संभावनाएं-
जिला में 2 मक्का प्रसंस्करण से संबंधित उद्योग पूर्व से ही स्थापित है एवं वृहद मात्रा में मक्का का उर्पाजन एवं प्रसंस्करण संचालित है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इन उद्योगों के लिए लगभग 75 प्रतिशत कच्चा माल अन्य राज्य बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं आन्ध्रप्रदेश से मांग करने की आवश्यकता होती है। अत: मक्का खेती के उपरांत उपज के विक्रय की असीम संभावना है। विस्तृत क्षेत्र में मक्का क्षेत्राच्छादन विपुल उत्पादन कर क्षेत्र मक्का जिला घोषित किया जा सकता है।
राजनांदगांव जिला के राजनांदगांव, डोंगरगांव एवं छुरिया ब्लाक, जिला-बालोद के सीमावर्ती विकासखंड हैं। मां दंतेश्वरी शक्कर कारखाना, करकाभाठ जिला-बालोद में कुल आपूर्ति 69175 मिट्रिक टन में से 55929 मिट्रिक टन गन्ना की आपूर्ति की जाती है। शेष 13247 मिट्रिक टन अन्य जिलों से पूर्ति की जा रही हैं। सीमावर्ती विकासखंडों के कुछ कृषक गन्ना की खेती कर इसका लाभ प्राप्त कर रहे हंै। इन विकासखंडों में ड्रिप सिंचाई पद्धति से गन्ना की खेती को प्रोत्साहित कर ग्रीष्मकालीन धान को प्रतिस्थापित करने की रणनीति तैयार की जा रही है। बहुवर्षीय फसल होने के कारण गन्ना की खेती से धान की फसल को 3 वर्ष के लिए प्रतिस्थापित किया जा सकता है। ग्रीष्मकाल में शीतल पेय की अत्यधिक मांग है। गन्ना रस जैसे पौष्टिक औषधीय, शीतल पेय पर्याप्त उपलब्ध नहीं होने के कारण जनसामान्य कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने को विवश होते हैं। विशेषकर डोंगरगढ़ जैसे धार्मिक तीर्थ स्थलों में लाखों की संख्या में तीर्थ यात्रियों के प्रवास के कारण गन्ना रस के शीतल पेय के विपणन की असीम संभावनाएं हैं। इसी तरह अन्य विकासखंडों में भी इसकी संभावनाएं है। कृषक समुदाय एवं लखपति दीदी एवं कृषि सखियों को गन्ना उत्पादन एवं शीतल पेय उद्यम से जोडऩे की आवश्यकता है।
राजनांदगांव जिला महाराष्ट्र राज्य का सीमावर्ती जिला होने के कारण भूमि एवं जलवायु में समानता हैं, जिसके कारण कपास की खेती 500 हेक्टेयर में सफलतापूर्वक की जा रही है। यह नगदी फसल कृषकों के लिए लाभदायी होने के कारण धान की खेती को प्रतिस्थापित कर रहा है, जिसके क्षेत्र विस्तार के लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है।
इंटरनेशनल मिलेट ईयर 2023 के दौरान लघुधान्य फसल रागी के सघन प्रचार-प्रसार के फलस्वरूप कृषकों द्वारा ग्रीष्मकालीन रागी की सफलतापूर्वक खेती की गई, जिसका कृषकों को लाभ प्राप्त हुआ एवं ग्रीष्मकालीन धान के स्थान पर इस पोषक अनाज या न्यूट्रिसिरियल की खेती की जा रही है। आधुनिक जीवन शैली में या हुए मधुमेह, कार्डियोवस्कूलर, ऑस्टियोपोरोसीस, कैंसर, अल्सर एवं मोटापा या ओबेसिटी जैसी बीमारियों के लिए औषधीय एवं सामान्यजनों के लिए पोषक तत्व-कैल्शियम, फास्फोरस, मैगनीज, आयरन, कापर, बोरान, जिंक एवं एमिनोएसिड्स, फाईटोकेमिकल्स से भरपूर होने के कारण इसकी दिन प्रतिदिन मांग बढ़ती जा रही हैं। ग्रीष्मकालीन धान के स्थान पर रागी की फसल की खेती को निरंतर प्रोत्साहित किया जा रहा है।
मनुष्य के भोजन में अनाज, दलहन, तिलहन, शर्करा के अतिरिक्त सब्जी एवं फलों का अत्यंत महत्व है, जिससे संतुलित पोषक तत्व कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन, वसा एवं खनिज तत्व एवं विटामिन्स की पूर्ति होती हैं। ग्रीष्मकालीन धान के स्थान पर 500 हेक्टेयर क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की सब्जियों एवं फलों की खेती करने की आवश्यकता हैं, जो धान की तुलना में अत्यधिक लाभदायक है।
मृदा परीक्षण कराने से मिलेंगे अच्छे परिणाम
मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला राजनांदगांव से प्राप्त मिट्टी नमूनों के विश्लेषण के आधार पर जिले में विश्लेषित कुल 23782 नमूनों में से 554 नमूनें तीव्र अम्लीय (5.5 पीएच से कम) एवं 6365 नमूनें मध्यम अम्लीय तथा 31 नमूने तीव्र क्षारीय 8871 नमूनें मध्यम क्षारीय (7.1 से 8.5 पी.एच.) प्राप्त हुए है। तीव्र अम्लीय या तीव्र क्षारीय भूमि में हर एक सामान्य फसल की खेती करने से अपेक्षित उपज नहीं मिल पाती है। अत: तीव्र अम्लीय वाले खेतों में भूमि सुधारक का उपयोग कर अनानास, टेपिओक एवं गाजर जैसी फसलें एवं तीव्र क्षारीय भूमि में भूमि सुधारक का उपयोग करके कपास एवं ज्वार की खेती की जा सकती है। इस विषय पर कृषकों को प्रशिक्षित कर वैज्ञानिक अनुशंसा के आधार पर फसल विविधीकरण की दिशा में गहन तकनीकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
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