गुरु हरगोबिंद साहिब जी के गुरुगद्दी पूरब की लख लख बधाई,
छठवें गुरु धन गुरु हरिगोविंद साहिब जी पहले सिख गुरु थे जिन्होंने भक्ति के साथ शक्ति का समन्वय स्थापित कर एक नूतन अवधारणा को जन्म दिया था। हरिगोबिंद साहिब जी का गुरु काल 38 वर्ष का था जिसमें सिख पंथ का बहुत प्रचार हुआ,
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भक्ति के साथ शक्ति(मिरी एवम पिरी)
गुरु हरिगोविंद जी पहले सिख गुरु थे, जिन्होंने भक्ति के साथ शक्ति का समन्वय स्थापित कर एक नूतन अवधारणा को जन्म दिया था।
वर्ष 1606 में 11 वर्ष की आयु में जब गुरु साहिब गुरुगद्दी पर आसीन हुए, तो परंपरागत वेश के स्थान पर उन्होंने दो तलवारें धारण कीं और सिर पर दस्तार सजाकर राजाओं की तरह कलगी लगाई। उन्होंने स्वयं शस्त्र धारण करने के साथ ही विधिवत फौज का भी गठन किया, जिसमें बलिष्ठ और समर्पित जवान शामिल किए।
धर्म जगत में जब इस पर प्रश्न उठे तो उन्होंने शंकाओं का निवारण करते हुए कहा था कि उनकी प्रतिबद्धता अध्यात्म और भक्ति से है, जबकि शस्त्र अधर्मी, अन्यायी का नाश के लिए है। इसे मीरी और पीरी के सिद्धांत के रूप में जाना गया।
गुरु हरगोबिंद साहिब जी का गुरु काल 38 वर्ष का था, जिसमें सिख पंथ का बहुत प्रचार-प्रसार हुआ। गुरु हरिगोविंद साहिब के पिता गुरु अरजन साहिब थे, जिन्हें लाहौर में मुगल शासन ने शहीद कर दिया था। गुरु हरिगोविंद साहिब ने सिखों में जहां वीरता का भाव भरा, वहीं धार्मिक सिद्धांतों के प्रति भी उनमें भावनाएं भरीं।
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अमृतसर में श्री हरिमंदिर साहिब के ठीक सामने गुरु साहिब ने श्री अकाल तख़्त साहिब की रचना की, जो दिल्ली के मुगल तख्त से अधिक ऊंचा था। वह इस पर बैठकर सिखों का मार्गदर्शन करते थे और शंकाओं का निवारण करते थे।
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शेर को मारना ओर किले से 52 राजाओं को रिहा कराना
एक बार जंगल में शिकार खेलते हुए जब जहांगीर पर शेर ने हमला कर दिया, गुरु साहिब ने तलवार के एक वार से ही शेर के टुकड़े कर जहांगीर की जान बचाई थी। उसी जहांगीर ने जब धोखे से उन्हें ग्वालियर के किले में बंदी बना लिया, तब उन्होंने धैर्य से काम लिया और किले में पहले से ही बंदी 52 स्थानीय राजाओं को भी अपने साथ रिहा करा लिया।
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उन्होंने अमृतसर, हरिगोबिंदपुर, गुरुसर महिराज और करतारपुर में मुगल आक्रमणों का वीरतापूर्वक सामना किया और विजय प्राप्त की। इसके बाद मुगलों ने कभी आक्रमण करने का साहस नहीं किया।
धर्म सर्वोपरि
गुरु हरिगोविंद साहिब का मानना था कि धर्म सर्वोपरि है और राजसत्ता को धर्मानुसार आचरण करना चाहिए। वह सदैव सिखों को विनम्र व सहज रहने को प्रेरित करते थे। उन्होंने कई सरोवर, किले आदि बनवाए और नगर बसाये। उन्होंने सैन्य बल का संयमित उपयोग अपरिहार्य स्थितियों में ही किया, ताकि धर्म संरक्षित रह सके
साभार डॉ सत्येंद्र पाल सिंह जी
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