चिकटराज देव बीजापुर के रहवासियों के आराध्य देव हैं.
बीजापुर से पूर्व दिशा की ओर गंगालूर मार्ग पर लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर चिकटराज देव मंदिर है.
चिकटराज देव 6-7 फीट लंबे बांसनुमा आकार की एक लकड़ी में विजराजमान हैं. कुछ वर्ष पहले तक चिकटराज घास के छप्पर से बनी एक कुटिया में विराजित थे.
ग्रामवासियों के सहयोग से उस स्थान पर अब पक्के मंदिर का निर्माण करा दिया गया है. मंदिर के सामने विष्णु, शिव, गणेश, हनुमान, लक्ष्मी आदि देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियां स्थापित हैं.
चिकटराज पूरे जिले के लोगों की आस्था के केंद्र हैं. जनश्रुतियों के अनुसार, जब चौदहवीं शताब्दी में काकतीय वंश के राजा अन्नमदेव अपने सम्पूर्ण पराक्रम एवं सैन्यबल तथा कुलदेवी के साथ बीजापुर, बारसूर से होते हुए नागवंशीय राजाओं पर विजय प्राप्त कर चक्रकोट (बस्तर) में प्रवेश किए तब मां दंतेश्वरी के साथ कई देवी-देवता आए तथा अपने मनचाहे स्थान पर विश्राम के लिये रुके और वहीं बस गये. इन्हीं में से एक है- चिकटराज देव का परिवार.
चिकटराज के पिता का नाम धर्मराज एवं माता का नाम दुरपूता है. ये उसूर क्षेत्र के पुजारी कांकेर में बस गए तथा चिकटराज देव अपने पांच भाइयों के साथ बीजापुर में.
चिकटराज आदिवासी समुदाय के आंगा देव हैं. बीजा त्योहार, हरेली आदि के प्रारंभ से पहले इनकी पूजा-अर्चना की जाती है और आशीर्वाद लिया जाता है.
चिकटराज में मेला भी लगता है. बताते हैं कि इस मेले की शुरूआत लगभग 85 वर्ष पूर्व हुई थी. तब से यह बदस्तूर जारी है.
प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्रि की रामनवमी के बाद पड़ने वाले प्रथम मंगलवार को यह मेला लगता है. मेले से 2 दिन पूर्व मेला स्थल पर एक शिला में चिकटराज देव को स्थापित किया जाता है. इसके अगले दिन से आसपास के देवी-देवताओं का आगमन प्रारंभ होता है. आगन्तुक देवी देवताओं का नृत्य संध्या होने तक चलता रहता है. मेले में लोगों के साथ देवी- देवता भी दूर-दूर से आते हैं. ग्राम देवता होने के कारण मेले के दिन जिला प्रशासन की ओर से शासकीय अवकाश घोषित किया गया है.