खैरागढ़। छत्तीसगढ़ सरकार ने आंगनबाड़ी केंद्रों में स्वच्छता बनाए रखने के लिए करोड़ों रुपए की व्यवस्था की है. सरकार की मंशा है कि छोटे बच्चों को स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण मिले. लेकिन खैरागढ़ और छुईखदान परियोजना में यह मंशा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती दिखाई दे रही है. यहां सफाई सामग्री के नाम पर अनियमितता और घटिया सप्लाई की परतें खुलने लगी हैं. शासन के निर्देशानुसार, सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में नीम साबुन, नेलकटर, नारियल तेल, डेटॉल, कंघी, झाड़ू, सुपली, डिटर्जेंट, फ्लोर क्लीनर और टॉयलेट क्लीनर जैसी जरूरी सामग्री वितरित की जानी थी. हालांकि, हकीकत यह है कि बहुत से केंद्रों में यह पूरी सामग्री नहीं पहुंची. कहीं 5 चीजें दी गईं, तो कहीं 8, और कुछ जगहों पर सिर्फ नाम मात्र का सामान भेजा गया.
मामले की पड़ताल में यह सामने आया कि कई केंद्रों को जंग लगे नेलकटर दिए गए, कुछ को टॉयलेट क्लीनर के खाली डिब्बे, तो कुछ को ऐसा डिटर्जेंट पाउडर मिलास जिसमें झाग तक नहीं उठता. यहां तक कि चूहे मारने वाले साबुन को सफाई सामग्री बताकर थमा दिया गया. कार्यकर्ताओं ने बताया कि उन्हें कार्यालय बुलाकर यह सामान दिया गया और रजिस्टर में हस्ताक्षर भी करवा लिए गए. खरीदी की प्रक्रिया को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. बताया गया कि खैरागढ़ और छुईखदान परियोजनाओं में सफाई सामग्री की सप्लाई के लिए लगभग ढाई-ढाई लाख रुपये खर्च किए गए. कोटेशन की प्रक्रिया के तहत धमधा की एक एजेंसी को सप्लाई की जिम्मेदारी सौंपी गई. लेकिन स्थानीय व्यापारियों का आरोप है कि उन्हें कोटेशन मंगाए जाने की कोई जानकारी नहीं दी गई. इससे यह संदेह और गहराता है कि सप्लाई प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती गई. स्थानीय बाजार से तुलना की जाए तो जो सामग्री सरकारी दरों पर 800 रुपए में दी गई, वह बाजार में अधिकतम 300 रुपए में उपलब्ध है. इससे साफ होता है कि सामग्री की खरीद में न केवल गुणवत्ता से समझौता किया गया, बल्कि सरकारी पैसे का दुरुपयोग करते हुए दोगुने से भी अधिक कीमत चुकाई गई. इस पूरे मामले पर जब अधिकारियों से सवाल किए गए तो खैरागढ़ जिला अधिकारी पीआर ख़ुटेल ने जंग लगे नेल कटर और गुणवत्ताहीन निरमा पाउडर के वितरण के संबंध में बताते हुए कहा कि अभी तक हमारे पास कोई शिकायत आया नहीं है, और इसका आवंटन परियोजना अधिकारियों को प्राप्त हुआ था. परियोजना अधिकारियों के द्वारा, नियमानुसार एजेंसियों से क्रय किया गया है. यदि केंद्र में ऐसा हुआ है तो उनके केंद्रों की जांच करेंगे. जांच के बाद जो स्थिति आएगी उचित कार्रवाई किया जाएगा. यह मामला साफ तौर पर सरकारी व्यवस्था में लापरवाही और भ्रष्टाचार का उदाहरण है. जांच और जवाबदेही सुनिश्चित करना अब प्रशासन की जिम्मेदारी है, ताकि भविष्य में इस तरह से बच्चों के स्वास्थ्य और सरकारी धन के साथ खिलवाड़ न हो सके.