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खैरागढ़ से हसदेव तक विकास के नाम पर जंगलों पर उठते सवाल, क्या हरियाली के आंकड़ों में सच्चाई को ढका जा रहा है?
Monday, December 22, 2025
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खैरागढ़ से हसदेव तक विकास के नाम पर जंगलों पर उठते सवाल, क्या हरियाली के आंकड़ों में सच्चाई को ढका जा रहा है?

खैरागढ़. खैरागढ़ के छुईंखदान क्षेत्र में प्रस्तावित श्री सीमेंट फैक्ट्री को लेकर उठा विवाद अब केवल एक औद्योगिक परियोजना तक सीमित नहीं रहा. यह मामला धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ में जल, जंगल, जमीन और विकास मॉडल पर खड़े बड़े सवालों का प्रतीक बन गया है. स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण संगठनों का आरोप है कि फैक्ट्री के नाम पर अंधाधुंध खुदाई की जाएगी जिससे वन भूमि, पहाड़ी संरचना और जल स्रोतों पर सीधा असर पड़ेगा,आस पास के सभी खेत बंजर हो जाएंगे, जबकि प्रशासन इसे नियमों के भीतर बताया जा रहा है. खैरागढ़ का यह विरोध अकेला नहीं है. हसदेव अरण्य, तम्नार, बस्तर और अबूझमाड़ जैसे इलाकों में भी खनन, उद्योग और बड़े प्रोजेक्ट्स के खिलाफ लगातार आवाज़ उठ रही है. हर जगह मूल चिंता एक ही है, क्या विकास की कीमत पर प्राकृतिक जंगलों की बलि दी जा रही है?

इसी बीच एक और अहम तथ्य सामने आता है. Global Forest Watch (GFW) जैसे अंतरराष्ट्रीय सैटेलाइट आधारित प्लेटफॉर्म के आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक जंगलों (Natural / Primary Forests) में लगातार tree cover loss हो रहा है. यानी वे जंगल जो सदियों से जैव विविधता, जल स्रोत और आदिवासी जीवन का आधार रहे, वे घट रहे हैं. इसके उलट सरकारी रिपोर्टों में फॉरेस्ट और ट्री कवर बढ़ने की तस्वीर पेश की जाती है. सड़क किनारे पौधारोपण, प्लांटेशन और निजी भूमि पर लगे पेड़ों को भी इसी श्रेणी में जोड़ दिया जाता है. तकनीकी रूप से यह आंकड़ा गलत नहीं है, लेकिन यहीं से असली बहस शुरू होती है. पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि प्लांटेशन और प्राकृतिक जंगल बराबर नहीं होते. पुराने जंगल केवल पेड़ नहीं, बल्कि पूरा पारिस्थितिक तंत्र होते हैं , नदियों का उद्गम, वन्यजीवों का घर और स्थानीय समुदायों की आजीविका. ऐसे जंगल कट जाएं और उनकी जगह कहीं और पौधे लगा दिए जाएं, तो काग़ज़ों में हरियाली बढ़ सकती है, लेकिन ज़मीन पर नुकसान स्थायी होता है.

खैरागढ़ में श्री सीमेंट फैक्ट्री को लेकर उठे सवाल भी इसी बड़े परिदृश्य से जुड़े हैं. स्थानीय लोग पूछ रहे हैं कि क्या ग्राम सभाओं की सहमति वास्तविक थी, क्या पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन पूरी ईमानदारी से हुआ, और क्या भविष्य में जल संकट व भूमि क्षरण का खतरा बढ़ेगा. यही सवाल आज पूरे प्रदेश में गूंज रहा है,क्या सरकार अनजाने में, या जानबूझकर, “ट्री कवर बढ़ने” की तस्वीर दिखाकर असली जंगलों के खत्म होने की सच्चाई को ढक रही है? यह मुद्दा सिर्फ़ आंकड़ों की बहस नहीं है, बल्कि नैतिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी का है. विकास जरूरी है, लेकिन यदि उसकी कीमत जंगल, पहाड़ और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य है, तो उस विकास मॉडल पर दोबारा सोचने की ज़रूरत है. छत्तीसगढ़ आज उसी चौराहे पर खड़ा है, जहां फैसला केवल फैक्ट्रियों और खदानों का नहीं, बल्कि जंगलों के साथ न्याय का भी है.

Ravindra Singh Bhatia
Ravindra Singh Bhatiahttps://ppnews.in
Chief Editor PPNEWS.IN. More Details 9755884666
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