रायपुर-
महंत बोले: मैं चुनाव लडूं या नहीं, आलाकमान तय करेगा,
रायपुर,30 अप्रैल 2018।”सक्ती की बात होती है, पर मेरे पास तो चाँपा जैजैपुर चंद्रपुर कटघोरा और मनेंद्रगढ़ विधानसभाओं से भी लड़ने का आग्रह कार्यकर्ताओं का आया है, और दबाव की तरह आया हुआ है, केवल सक्ती ही एक सीट नही है”
चुनाव संचालन समिति के मुखिया और पूर्व केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत ने उक्ताशय की बातें कहीं।
चरणदास महंत ने हालाँकि इसके साथ यह भी जोडा
“मैं लोकसभा लड़ूँगा या विधानसभा लड़ूँगा यह मुझे तय नही करना है, यह तो पार्टी तय करेगी, जो निर्देश मिलेगा उसके अनुरुप काम करुंगा”
दरअसल परिसीमन के बाद सक्ती में महंत का गृह ग्राम जुड़ गया है, वे पहले चाँपा से निर्वाचित रह चुके हैं, पर परिसीमन के बाद स्थितियाँ और समीकरण तब्दील है, इसलिए बार बार यह क़यास उठते है कि, महंत यदि विधानसभा लड़ते है तो उनके लिए सबसे ‘सुरक्षित’ सीट सक्ती ही होगी।लेकिन महंत की इस मामले में दलील अलग है, बल्कि महंत का यह व्यक्तव्य कई दावेदारों के लिए समस्या बन सकता है।
महंत ने पाँच और विधानसभाओं के नाम लेकर नया दाँव फेंका है, और इसके लिए उनके पास तर्क है
“सांसद रहा हूँ तो मनेंद्रगढ़ और कटघोरा के कार्यकर्ताओं का दबाव है उनका आग्रह है कि मैं उनके क्षेत्रों से चुनाव लड़ूँ, वैसा ही मसला जैजेपुर चंद्रपुर और चाँपा से भी है, सक्ती तो ख़ैर है ही, और जैजैपुर चंद्रपुर चाँपा मेरा पुराना क्षेत्र है”
यहाँ यह ध्यान देने लायक बात है कि, महंत ने पाँच नए विधानसभा क्षेत्रों में दिलचस्पी ज़ाहिर कर दी है, पर इसके अलावा सक्ती उनकी सूची में मौजुद है।ज़ाहिर है वे लड़ेंगे किसी एक जगह से ही, पर बाक़ी पाँच उनकी सूची में क्यों शामिल हुए, वह भी इस बात के साथ कि
“विधानसभा लड़ना नही लड़ना यह फ़ैसला मेरे हाथ में नही पार्टी के हाथ में है”
कांग्रेस में एकता की बाँसुरी से राग सही से निकलवाने की कवायद पीएल पुनिया लाख कर रहे हो, पर सच यह है कि राग सही से निकल नही रहा है। कांग्रेस के नज़रिए से देखें तो समझ आता है,कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ में संगठन का मतलब इलाकेदार या कि क्षत्रपों के क्षेत्र के रुप में बँटे इलाक़े हैं और समन्वय शब्द की आड़ में इन इलाकेदारो को उनके इलाक़े की कमान दी गई है।
चरणदास राजनीति के पहुँचे हुए ‘महंत’ है, साफ है कि उनका यह बयान केवल सामान्य बयान नही है बल्कि कूटनैतिक दाँव है, जिसमें शायद वे बग़ैर कहे यह बताना चाह रहे हैं कि, सक्ती तो है ही, बाक़ी पाँच विधानसभाओ में भी उनकी गहरी दखल है, और यदि वे लड़े सक्ती से ही तो भी यह बात ना भुली जाए कि, उनके प्रभाव क्षेत्र की पाँच सीटें और हैं, जो सामान्य याने जनरल है, याने टिकट वितरण के मौक़े पर इन इलाक़ों के लिए टिकट किसे दी जाए उसमें उनकी सहमति असहमति को सम्मान दिया जाना चाहिए।
यह देखने वाली बात होगी कि, इशारों में कही बात को कितनी गंभीरता से लिया जाता है या नही लिया जाता, शायद यह समझने जानने के लिए ज्यादा इंतजार करना भी ना पड़े ।