कीट विज्ञान विभाग से जाने-सब्जी फसलों में समेकित कीट प्रबंधन

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कीट विज्ञान विभाग से जाने

सब्जी फसलों में समेकित कीट प्रबंधन

लेखक- पुष्पेंद्र सिंह साहू एम.एस.सी. एग्रीकल्चर) कीट विज्ञान विभाग) शुआट्स, इलाहाबाद. भारत

ऋचा चौधरी कीट विज्ञान विभाग, कृषि महाविद्यालय, इं.गां.कृ.वि. रायपुर (छ0ग0)

डॉ. हादी हुसैन ख़ान (शोध सहयोगी) कीट विज्ञान विभाग क्षेत्रीय वनस्पति संगरोध केन्द्र अमृतसर, पंजाब, भारत

गोभी वर्गीय सब्जियां
गोभी वर्गीय फसलों में प्रायःचेपा का प्रकोप अधिक रहता है। अगर इनकी द्वारा क्षति की पहचान कर ली जाए तो इनके नियंत्रण में आसानी होती है।
1. गोभी का हीरक पृष्ठ शलभ या डायमंड बैकमाथ (डी.बी.एम.) :- हल्के हरे रंग की होती है और पूरी बढ़ने पर एक से.मी. लंबी, बीच में मोटी तथा दोनों तरफ पतली होती है। पत्तों को धीरे से हिलाने पर सुंडी नीचे की तरफ धागे जैसे पदार्थ की सहायता से लटक जाती है। प्रारंभिक अवस्था में सुंडी पत्तियों में छेद बनाकर हरे पदार्थ को खाती है तथा अधिक आक्रमण होने पर सुंडियां गोभी के फल को भी चटकर जाती हैं। पत्तियों पर सुंडियों केमल के कारण काले फफूंद की बीमारी हो जाती है।

2. गोभी की तितली (पाइरिस बेसिकी) :- इस की सुंडी गोभी में हर जगह पायी जाती है। इसका रंग हल्का पीला होता है तथा पूरी बढ़वार पर सुंडी 5 से.मी. तक लंबी होती है। छोटी सुंडी समूह में पायी जाती है व बड़ी होने पर इधर-उधर फैलकर नुकसान पहुंचाती है। ये अधिकतर पत्तियों के बाहरी किनारों से खाना शुरू करके अंदर की ओर बढ़ती हैं। अधिक आक्रमण होने पर पत्तों की सिर्फ शिराएं ही बच जाती हैं।

3. चेंपा :- इस कीट के पंखहीन हल्के रंग के शिशु व प्रौढ़ गोभी के पत्तों के नीचे की ओर मिलते हैं, इस कीट के पीछे के भाग से निकले मीठे चिपचिपे पदार्थ से पत्तों पर काली फफूंदी लग जाती है।

4. कूबड़ कीटः- इसे सेमी लूपर भी कहते हैं। इसकी सुंडियां कुछ पीलापन लिए हरे रंग की होती हैं व चलने पर कूबड़ सा आकार बनाती हैं। सर्दियों में कई प्रकार की सब्जियों के पत्तों को खाकर इनमें गोलाकार छेद कर देती हैं।

रोकथाम
1. खेत की गहरी जुताई करें ताकि कीट और रोगके जीवाणु पक्षियों द्वारा खालिए जाएं अथवा तेज धूप में नष्ट हो जाएं। पौध के रोपण से पहले जड़ का इमेडाक्लोप्रिड द्वारा उपचार करें।
2. फसल की बढ़वार की अवस्था में नीम के अर्क (एन.एस.के.ई.) का 5 प्रतिशत घोल दो-तीन बार छिड़काव करने पर कीटों के प्रकोप में कमी आ जाती है। यह छिड़काव दोपहर बाद करना चाहिए।
3. रस चूसने वाले कीटों से बचाव के लिए थायामिथोक्साम (2ग्रा./10 लि.) अथवा डेल्टामेथ्रिन (1मि.ली./लि.) का प्रयोग करें।
4. हीरक पीठ शलभ (डी.बी.एम.) के नियंत्रण के लिए कार्टप (1 मि.ली./लि.) अथवा बी.टी. (1ग्राम/लि.) का छिड़काव करें।
5. आवश्यकतानुसार स्पाइनोसेड ( 2 मि.ली./10 ली.) का छिड़काव 15 दिन के अंतर पर करें।
6. सुंडियों के परजीवी कोटेशियाप्लूटेली का प्रयोग 1000 वयस्क प्रति हैक्टर की दर से करने पर कीटनाशकों के प्रयोग में कमी आती है।
7. मित्र कीटों (लेडी बर्ड बीटल, सिर्फिड आदि) की बढ़ोतरी के लिए मुख्य फसल के चारों तरफ और बीच-बीच में बरसीम या रिजका या सूरजमुखी या टमाटर उगायें।
8. एक ही कीटनाशक का प्रयोग बार-बार न करें।

टमाटर
टमार की फसल में मुख्य रूप से फल छेदकों से भारी नुकसान होता है।
1. चने की सुंडी (हैलिकोवर्पा आर्मीजेरा) :- यह बहुभक्षी कीट टमाटर को भारी नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की सुंडी फल में गोल छेद बनाकर अपने शरीर का आधा भाग घुसा कर फल का गूदा खाती है जिस कारण फल सड़ जाता है। इसके वयस्क के शरीर पर बदामी भूरे रंग के बाल होते हैं।आगे का पंख पीला भूरा होता है, मध्य भाग काला तथा पीछे के पंखों का रंग मटमैला सफेद होता है।

2. तम्बाकू की सुंडी (स्पोडोप्टोरा लिट्टूरा):- यह एक बहुभक्षी कीट है। इसकी सुंडियां चिकनी व काले रंग की होती हैं। इसकी सुंडी प्रारंभ में समूह में रहकर पत्तियों की ऊपरी सतह खुरचकर खाती है। पूर्ण विकसित सुंडियां पत्तियों को काटकर खाती हैं तथा यह रात के समय में अधिक सक्रिय होती हैं। इसके अधिक प्रकोप होने पर पौधा पत्ती विहीन हो जाता है।
रोकथाम
1. खेती की गहरी जुताई करने से मिट्टी में मौजूद प्यूपा व सुंडियां पक्षियों द्वारा खा लिए जाते हैं या तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं।
2.पत्ती मरोड़क प्रतिरोधी किस्म उगाएं और बीमारी से ग्रसित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें।
3. टमाटर की रोपाई के दौरान 10-15 कतार के बाद गेंदे के पौधों की एक कतार की रोपाई करें । ऐसा करने से हेलिकोवर्पा का नियंत्रण होता है।
4. रस चूसने वाले कीटों से बचाव के लिए एमीडाक्लोप्रिड ( 2 मि.ली/10 ली.) या थायामिथोक्साम ( 2 ग्रा./10 लि.) का प्रयोग करें।
5. ट्राइकोग्रामा काइलोनिस का प्रयोग फल छेदक के नियंत्रण के लिए 50,000 प्रति हैक्टेयर की दर से करें।
6. फल छेदक की निगरानी के लिए फेरोमोनट्रेप 5 प्रति हैक्टेयर की दर से लगायें।
7. बी.टी. का एक या दो छिड़काव 1 ग्राम प्रति लीटर की दर से 15 दिनों के अंतराल पर करें।
8. एन.पी.वी. छिड़काव 250 एल. ई./हैक्टेयर की दर से करें।
9. आवश्यकता होने पर फेनिट्रोथियानडेमेटान (2 मि.ली./लि.) या मिथायालडेमेटोन (2 मि.ली./लि.) या डेल्टामेथ्रिन ( 1 मि.ली./लि.) का छिड़काव करें।
10.रासायनिक कीटनाशकों के छिड़काव से पूर्वस्वस्थ एवं पके फलों को तोड़लें तथा क्षतिग्रस्त फलों को नष्ट कर दें।

कद्दू वर्गीय फसलें
इन सब्जियों में फलमक्खी का प्रकोप अत्यधिक होता है। यह मक्खी करेला, लौकी, तौरी, कद्दू, खरबूजा, टिंडा, कुन्दरू और खीरा आदि फसलों को हानि पहुंचाती है। वयस्क मादा अपने डंक द्वारा इन सब्जियों के फल में अण्डे देती है और उनमें से लार्वा/सुंडी निकलकर फल के अंदर के गूदे को खाकर 7-9 दिन में पूर्ण तया बड़े हो जाते हैं। फिर ये लार्वा फलों से बाहर निकलकर नीचे छलांग लगा देते हैं और मिट्टी के अंदर जा कर प्यूपा बना देते हैं। 7-11 दिन बाद उनमें से वयस्क मक्खी निकलकर फिर से सब्जियों के अंदर अण्डे देती हैं।
रोकथाम
1.कीट एवं रोगरोधी प्रजाति का चुनाव करें।
2.प्रत्येक 4-5 दिन बाद सवंमित फलों को इकट्ठा कर के नष्ट कर दें या प्लास्टिक के मजबूत थैलों में भरकर उनका मुंह बांध दें।इन थैलों को एक सप्ताह बाद खाली किया जा सकता है।
3.प्रोटीन प्रलोभन का छिड़काव करें। यह सम्मिश्रण प्रोटीन व कीटनाशी से बनाया जाता है। इस मिश्रण का पूरे खेत में छिड़काव करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि सीमित दायरे में छिड़काव पर्याप्त होता है।
4. छोटे फलों के मुरझा जाने का कारण फलमक्खी ही होती है। आवश्यकता होने पर स्पाइनोसेड 45 एस.सी. (2 मि.ली/2ली. पानी) का छिड़काव करें।

बैंगन
1, बैंगन का प्ररोह एवं फल छेदकः- यह कीट बैंगन की फसल का प्रमुख शत्रु है। इसकी सुंडी बैंगन की प्रारंभिक अवस्था से लेकर फल अवस्था तक सक्रिय रहती है। बैंगन के पौधे जब 30-40 दिन के होते हैं तभी से इसका प्रकोप आरंभ हो जाता है। इस अवस्था में सुंडी नई पुष्प्कलियों तथा तने में छेदकर के सुरंग बनाती हुई अंदर घुस जाती है जिससे ऊपर का भाग मुरझा कर लटक जाता है और पौधे की बढ़वार रूक जाती है। फल अवस्था में यह उनके अन्दर का गूदा खाती है जिससे फलों का बाजार मूल्य कम हो जाता है। इस कीट की सुंडियां सफेद पीले रंग की होती हैं, शरीर बैंगनी रंग का होता है तथा पतंगा सफेद होता है और पंखों पर काले-काले धब्बे होते हैं।

2. बैंगन का धब्बेदार पत्ती भृंग (एपीलेक्ना या हड्डा भृंग) :- यह भूरे रंग का अर्धगोल आकृति में होता है। इसके शरीर के ऊपरी भाग में 6, 15 या 28 काली बिंदिया पाई जाती हैं। वयस्क भृंग काफी तेजी से उड़ते हैं। इस कीट के वयस्क एवं ग्रब्स या शिशु दोनों ही पत्तियों में छेद बनाकर खाते हैं जिससे शिरायें ही शेष रह जाती हैं। इससे ग्रसित पौधे सूखकर मर जाते हैं।

3. फुदकाः- यह कीट पत्तियों तथा कोमल टहनियों का रस चूसता है। यह आकार में छोटा तथा हरे रंग का होता है। इसके प्रौढ़ व शिशु दोनों ही फसल को नष्ट करते हैं। इस कीट के प्रभाव से पत्तियां ऊपर मु़ड़ जाती हैं। अधिक प्रभाव से पत्तियां पीली अथवा भूरी हो जाती है।
रोकथाम
1. एक ही खेत में लगातार बैंगन की फसल को नहीं लेना चाहिए।
2. अपने क्षेत्र के लिए अनुमोदित जातियों के बीज उगाएं।
3. एपीलेक्ना/हड्डा भृंग के अण्डों और ग्रब्स को एकत्रित करके नष्ट कर दें।
4. फल छेदक की निगरानी के लिए 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगायें।
5. मकड़ी एवं परभक्षी कीटों के विकास एवं गुणन के लिए मुख्य फसल के बीच-बीच में और चारों तरफ बेबीकॉर्न या ग्वार लगायें जो बर्डपर्च का भी कार्य करती है।
6. फल छेदक द्वारा क्षति ग्रस्त प्ररोहों को तोड़कर नष्ट कर दें।
7. रस चूसने वाले कीटों के लिए थायामिथोक्साम (2ग्रा./10 लि.) का छिड़काव करें।
8. फल छेदक के नियंत्रण के लिए ट्राइकोग्रामा ब्रांसेलिअनसिस (1 लाख/है.) का उपयोग करें।
9. आवश्यकतानुसार फल छेदक के नियंत्रण के लिए साइपरमेथ्रिन (1.5मि.ली./10ली.) या डेल्टामेथ्रिन (1 मि.ली./1ली.) या इकोनीम (10000 पीपीएम) ( 1 मि.ली./ली.) आदि का दो-तीन बार छिड़काव करें। एक ही कीटनाशक का प्रयोग लगातार न करें।

भिण्डी
1. भिण्डी का प्ररोह एवं फल छेदक :- इसकी सुंडी चित्तीदार होती है। अधिक नमी एवं उच्चतापमान पर इसका प्रकोप बढ़ जाता है। सुंडी तनों को छेदकर अन्दर घुस जाती है जिससे पौधे का शीर्ष भाग सुख जाता है। फल लगने पर सुंडी उसमें छेद बनाकर अंदर गूदा खाती है और ग्रसित फल मुड़ जाते हैं और भिण्डी खाने योग्य नहीं रहती है। पूर्णविक सितसुंडी का सिर काला तथा शरीर पर छोटे-छोटे बाल होते हैं।

2. भिण्डी का फुदका या तेला (एमरेस्का बिगुतुला) :- शिशु (निम्फ) एवं वयस्क दोनों ही हानि कारक होते हैं। ये पौधे की पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं। इससे ग्रसित पत्तियां गीली पड़ जाती हैं और अधिक प्रकोप होने पर मुरझाकर सूख जाती हैं। बदली के मौसम में इसका प्रकोप बढ़ जाता है।वयस्क कीट 2-3 मि.मी. लम्बी हरे रंग के होते हैं तथा ये हमेशा तिरछे चलते हैं।

3. सफेद मक्खी (बेमैसिया टेबैकी) :- यह सफेद रंग की छोटी मक्खी होती है तथा पत्तियों का रस चूसती है। यह भिण्डी में “ये लोवेन मोजैक वायरस“ फैलाती है जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। इस बीमारी से पैदावार में काफी कमी आ जाती है और फल खाने योग्य नहीं रह जाता है।
रोकथाम
1.अपने क्षेत्र के लिए अनुमोदित और प्रमाणित जातियों एवं विषाणु प्रतिरोधी किस्मों के बीज ही प्रयोग में लाएं।
2. मकड़ी एवं परभक्षी कीटों के विकास एवं गुणन के लिए मुख्य फसल के बीच-बीच में और चारों तरफ बेबी कॉर्न लगायें जो बर्डपर्च का भी कार्य करती है।
3. रस चूसने वाले कीटों से बचाव के लिए बीजों को इमीडाक्लोप्रिड या थायामिथाक्साम द्वारा 5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज दर से उपचारित करें।
4. फल छेदक की निगरानी के लिए 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हैक्टेयर लगायें।
5. फलछेदक के नियंत्रण के लिए ट्राइकोग्रामा का इलोनिस एक लाख प्रति हैक्टेयर की दर से उपयोग करें।
6. आवश्यकतानुसार 35 दिन पुरानी फसल पर तथा 15 दिन के अंतराल पर इमीडाक्लोप्रिड ( 2 मि.ली./10लि.) या एसिटामिप्रिड ( 2 ग्रा./10 लि.) का छिड़काव रस चूसने वाले कीटों के लिए और सापरमेथ्रिन ( 2मि.ली./लि.) या बाइफेन्थ्रिन (0.5-1मि.ली./लि.) या लैम्डा-साइहेलोथ्रिन (5 मि.ली./10 लि.) या स्पाइनोसेड (80 ग्रा. सक्रिय तत्व/है.) का 1-2 बार छिड़काव फल छेदक के लिए करें।
7. कीटनाशी छिड़कने से पहले स्वस्थ फलों को तोड़ लें।

मिर्च
1. थ्रिप्स (स्किर्टोथ्रप्स डार्सेलिस)ः- इसके निम्फ एवं वयस्क दोनों ही हानि पहुंचाते है। निम्फ एवं वयस्क दोनों पत्तियों के हरे भाग को खरोचकर खाते हैं जिससे पत्तियों पर धब्बे पड़ जाते हैं। इतना ही नहीं ये फूल, कोमल तनों का रस भी चूसते हैं।फलस्वरूप पत्तियां, फल, फूल एवं कलियां सिकुड़ जाती हैं। इसके अधिक प्रभाव से पौधों की बढ़वार रूक जाती है। इनके प्रभाव से विषाणु बीमारी भी मिर्च में फैलती है । थ्रिप्स का प्रभाव ऐसे खेतों में अधिक होता है जहां खेत सूखे होते हैं। इस कीट का प्रकोप सितम्बर से अक्टूबर तक अधिक रहता है इस कीट के नियंत्रण के लिए थायक्लोप्रिड (50 ग्रा. सक्रिय तत्व/हैक्टेयर) के छिड़काव से अच्छे परिणाम मिले हैं।

2. माहू (एफिस गौसीपाई) :- ये पंखदार तथा पंखविहीन दोनों ही प्रकार के होते हैं । पूर्णविकसित माहू लगभग 1.75 से 1.90 मि.मी. लंबा होता है और पंख की फैली अवस्था में 3.25 मि.मी. लम्बा होता है। पंखदार माहू कें अंदर में धारियां भी पाई जाती हैं। ये पत्तियों, कोमल तनों में हजारों की संख्या में पाए जाते हैं तथा रस चूसकर पौधे को कमजोर कर देते हैं। इनके चूसने वाले मुखांग होते हैं। इन का रंग हल्का हरा, हल्का भूरा व पीला पन लिए अनेक प्रकार का होता है । कभी-कभी ये कीट पत्तियों के ऊपर भी मिलते हैं।
रोकथामः- इनकी रोकथाम थ्रिप्स कीट की तरह करें। इसके अलावा मेटासिस्टाक्स 0.03 प्रतिशत या रोगर 0.025 प्रतिशत या मेलाथियान 0.05 प्रतिशत के घोल के छिड़काव से भी अच्छे परिणाम मिले हैं।

3. माइट (फायलोफागोटा सोनेमसलेटस)ः- इसका मिर्च पर बहुत अधिक प्रभाव होता है। इसके बच्चे एवं वयस्क दोनों ही हानिकारक हैं जो अपने थूक से पत्तियों पर जाला साबुन कर हरा पदार्थ खाती रहती हैं। इन जालों में हजारों संख्या में माइट मिलती है ।इनके प्रभाव से पत्तियां टेढ़ी भी पड़ जाती हैं और उन पर धब्बे पड़ जाते हैं। फलस्वरूप बहुत हानि होती है।
रोकथामः- इस कीट को ओमाइट के छिड़काव से नियंत्रित किया जा सकता है।

4.फल छेदकः- इस कीट की सुंडियां फलों के अंदर घुसकर उन्हे नष्ट कर देती हैं। फल छेदक के नियंत्रण के लिए स्पाइनोसैड (80 ग्रा. सक्रिय तत्व / है.) या नोवालूरॉन (35 ग्रा. सक्रितत्व/है.) का छिड़काव करें।

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